गर्भावस्था के दौरान जब महिला सातवें महीने(Seven months pregnancy in hindi) में प्रवेश करती है, तब उस महिला का और ज्यादा अधिक ध्यान रखा जाता है। ऐसे में एक महिला के शरीर में बहुत दिन प्रकार के बदलाव भी होते हैं साथ ही कुछ नए एहसास भी गर्भवती महिला के दिलो-दिमाग में पैदा होने लगते हैं। गर्भावस्था का यह एक ऐसा महीना होता है जब महिला अपने गर्भ में पल रहे बच्चे के साथ एक अलग तालमेल बनाना आरंभ करती है और साथ ही गर्भवती महिला के स्वभाव में भी बहुत बदलाव आता है। तो चलिए जानते हैं कुछ लक्षण सातवें महीने( Seven months pregnancy in hindi ) का गर्भ धारण करने वाली महिला के अंदर आने वाले कुछ बदलाव विकास और शारीरिक आवश्यकताओं के बारे में।
सातवें महीने के पड़ाव पर दिखने वाले कुछ लक्षण(Some symptoms seen at the stop of the seventh month of pregnancy in hindi)
सातवें महीने( Seven months pregnancy in hindi ) का पड़ाव ऐसा होता है जिसमें शरीर में कुछ विभिन्न प्रकार के लक्षण नजर आने लगते हैं जो निम्नलिखित हैं:-
- सातवें महीने( Seven months pregnancy in hindi ) तक आपका पेट पूरी तरह से बाहर निकल आता है और ज्यादा दिखने लगता है ऐसे में पेट का भारी भरकम प्रभाव आपके पैरों और मूत्राशय पर ज्यादा पड़ता है। जिसकी वजह से पैरों में सूजन और चलने में तकलीफ का अहसास गर्भवती महिला को होने लगता है।
- गर्भावस्था के दौरान आगे की ओर निकलने लगता है तो उस समय खानपान और शारीरिक बदलाव की वजह से शरीर में कई प्रकार के बदलाव नजर आते हैं जिसकी वजह से कमर दर्द जैसी समस्या भी उत्पन्न होती है।
- महिला के स्वभाव में भी कई प्रकार के परिवर्तन होते हैं जिसमें उनकी मनोदशा को चित्रकार हो जाती है कि वह एक ही पल में हंसने लगती हैं और दूसरे पल में उनका रोने का मन करता है। ऐसा आमतौर पर बहुत सारी महिलाओं को होता है और कुछ महिलाओं को ऐसा कुछ भी अनुभव नहीं होता है तो यह घबराने वाली बात नहीं होती है।
- घर के सातवें महीने के दौरान महिलाओं के स्तन से शराब होना आरंभ हो जाता है क्योंकि जिन महिलाओं के स्तन में दूध बनने लगता है सातवें महीने तक पहुंचते-पहुंचते उनके स्तनों से थोड़ा बहुत परेशान होना आरंभ हो जाता है। वह एक पीले रंग का गाढ़ा पदार्थ होता है जिसे कोलोस्ट्रम कहते हैं।
- बच्चा जब पूरी तरह से पेट में अपनी जगह बना लेता है उस दौरान महिला के शरीर में खाना देर से पचने और धीरे पचने की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है जिसकी वजह से उसे कब और अपच जैसी परेशानी उत्पन्न होने लगते हैं।
- मूत्राशय में ज्यादा जोर पड़ने की वजह से बार-बार शौचालय जाने की प्रक्रिया का सामना भी दिनभर गर्भवती महिलाओं को करना पड़ता है।
- Pregnancy First month(गर्भावस्था का पहला महीना)-सम्पूर्ण जानकारी
- Pregnancy second month(गर्भावस्था का दूसरा महीना)-सम्पूर्ण जानकारी
- Pregnancy third month(गर्भावस्था का तीसरा महीना)-सम्पूर्ण जानकारी
- Fourth month pregnancy in hindi:गर्भावस्था का चौथा महीना हिंदी में
- Fifth month pregnancy in hindi:गर्भावस्था का पांचवा महीना
- Six months pregnancy in hindi:गर्भावस्था का छटा महीना इन हिंदी
अंतिम तिमाही की शुरुआत के दौरान गर्भवती महिला के शरीर में दिखने वाले कुछ बदलाव(Some changes in the body of a pregnant woman during the beginning of the last trimester)
अंतिम तिमाही आशीर्वाद के दौरान महिला के शरीर में का विभिन्न प्रकार के बदलाव आते हैं जिसकी वजह से महिला के स्वभाव में भी परिवर्तन आना लाजमी हो जाता है। आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही सामान्य लक्षण के बारे में:-
- सातवें महीने(Seven months pregnancy in hindi ) तक वजन बढ़ना तो लाजमी है ऐसे में गर्भाशय भी धीरे-धीरे बढ़ने लगता है और बच्चा जब अपने पूरे आकार में आ जाता है उस दौरान पेट में खिंचाव होने लगता है जिसकी वजह से पेट पर निशान भी बन जाते हैं।
- गर्भाशय का आकार बढ़ने की वजह से गर्भाशय नाभि के ऊपर तक पहुंच जाता है जिसकी वजह से कभी कभी सांस लेने में भी तकलीफ होने लगती है। राशियों पर आने की वजह से कई बार गर्भवती महिला को सोते समय भी परेशानी होती है।
- पेट का बड़ा होने की वजह से चलने और झुकने में भी समस्या आने लगती है।
- जब गर्भ में पल रहे बच्चे की गति बढ़ने लगती है तो ऐसे में शरीर में रक्त प्रवाह भी तेज हो जाता है जिसकी वजह से शरीर के कुछ भाग पर सूजन आने की संभावना भी रहती है।
अंतिम तिमाही में गर्भ में पल रहे बच्चे का विकास और आकार(Development and size of the unborn baby in the last trimester(Seven months pregnancy in hindi))
- इस वक़्त तक बच्चे के शरीर के लगभग 75% भाग विकसित हो जाते है।
- अपने आप पास होने वाली आवाज़ों औऱ क्रियाओं पर वह प्रतिक्रिया देना आरम्भ कर देता है।
- अंतिम तिमाही तक बच्चे की पलकें ओर बोहे भी पूरी तरह से निर्मित हो जाती है।
- यह एक ऐसा समय होता है जब शिशु अपनी आंखें खोलना भी शुरू कर देता है और पलकें झपकाता भी है।
- सातवें महीने तक शिशु की लंबाई लगभग 14 इंच तक बढ़ जाती है और यदि बच्चा तंदुरुस्त हो तो उसका वजन लगभग 1 किलो या उससे ऊपर तक हो जाता है।
अंतिम तिमाही में इन बातों का रखें ध्यान(Keep these things in mind in the last quarter)
इस दौरान गर्भवती महिला का कुछ ज्यादा ध्यान रखा जाता है जिसमें कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें बिल्कुल भी करने से कोई भी दुर्घटना हो जाती है।
- खानपान का रखें ज्यादा ध्यान:- अंतिम तिमाही के समय गर्भवती महिला को ओमेगा 3 फैटी एसिड का सेवन अधिक कराना चाहिए ताकि गर्भ में पल रहे बच्चे के साथ साथ गर्भवती महिला भी पूरी तरह से स्वस्थ हो। डॉक्टर की सलाह से इस माह के आरंभ से ही गर्भवती महिला समुद्री भोजन और अखरोट जैसे खान पान को अपना सकती है।
- नियमित रूप से करें सैर:- ऐसे समय में जब अपच और कब्ज जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं तब गैस की परेशानी भी अक्सर गर्भवती महिलाओं को रहती है। यदि वे समय-समय पर खाना खाने के बाद या फिर ऐसे ही थोड़ी देर सैर करती रहें तो ऐसे में उनका पेट स्वस्थ रहता है और आसानी से खाना भी पच जाता है।
- नियमित जांच है आवश्यक:– गर्भवती महिला को नियमित रूप से डॉक्टर के पास जाना और पूरी जांच करवाना बेहद आवश्यक होता है क्योंकि एक छोटी सी लापरवाही बच्ची या मां को नुकसान पहुंचा सकती है। मां और बच्चे दोनों में ही पोषण की आवश्यकता होती है जिसकी खुराक में समय-समय पर सुधार लाने और बढ़ोतरी करने की जिम्मेदारी परिवार के सदस्यों को होती है ऐसे में डॉक्टर की सलाह सबसे ज्यादा काम आती है।
- जरूरी अनुपूरक ले:- पोषण का ध्यान केवल गर्भ में पल रहे बच्चे की मां ही रख सकती है क्योंकि बच्चा मां से जुड़ा होता है और जो उसकी मां खाती है उसी भोजन से उस बच्चे को पोषण और भरण मिल पाता है। इसलिए एक गर्भवती महिला को समय समय पर उचित भोजन और उसकी मनपसंद का भोजन देते रहना अति आवश्यक है जिससे उसे सही मात्रा में पोषण, कैल्शियम, विटामिन और आदि आवश्यक वस्तुएं प्राप्त हो सके।
- खुद को व्यस्त रखें:– प्रसव का समय जितना ज्यादा नजदीक आता रहे उतना ज्यादा खुद को व्यस्त रखना बेहद आवश्यक होता है। ताकि गर्भवती महिला अपने गर्भ में पल रहे बच्चे के बारे में ज्यादा ना सोचे जिसकी वजह से उसे घबराहट ना हो। चाहे तो अपनी मनपसंद का संगीत सुन सकते हैं या फिर किताब पढ़कर भी अपना समय व्यतीत कर सकते हैं।
अंतिम तिमाही के दौरान खाए जाने वाला भोजन(Food to be eaten during the last quarter)
भोजन जिसका प्रभाव सीधा गर्भवती महिला के साथ साथ उसके बच्चे पर भी पढ़ता है। ऐसे में एक गर्भवती महिला जो भी खाती है उसका असर उसके सीने में जलन, पैरों में सूजन, कब्ज जैसी समस्याएं उत्पन्न कर सकता है। इसके लिए आवश्यक है कि वह इस बात को जान ले कि उसे एक संतुलित आहार किस प्रकार और किस मात्रा में लेना चाहिए ताकि उस गर्भवती महिला को उस भोजन से कोई भी समस्या का सामना ना करना पड़े। हम तो आइए जानते हैं एक सही डाइट जिससे सातवें महीने के दौरान गर्भवती महिला को बचना चाहिए:-
- मसालेदार और ज्यादा फैट वाली चीजें:– ज्यादा मसाला और तेल से बनी सब्जियों और भोजन की वजह से सीने में जलन की समस्या उत्पन्न होती है इसलिए ऐसी चीज़ों को खाने से एक गर्भवती महिला को बचना चाहिए।
- सोडियम का ज्यादा इस्तेमाल:– कुछ वस्तुएं जैसे ज्यादा नमक वाली चिप्स, डिब्बाबंद आहार व बाजार का अचार आदि भोजन में सोडियम का बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया गया होता है जिसको खाने से शरीर में सूजन आ ही जाती है। जो महिलाएं गर्भ के दौरान अपने शरीर में सूजन की शिकायत करती हैं आप कुछ महिलाओं को वह सूजन प्राकृतिक होती है लेकिन कुछ महिलाओं को अधिक सोडियम के इस्तेमाल की वजह से सूजन की शिकायत होती है।
- कैफीन व अल्कोहल:- बच्चे को नुकसान से बचाने के लिए मां हर भरसक प्रयास करती है लेकिन कुछ महिलाओं को शराब तंबाकू सिगरेट और कैफीन युक्त पदार्थ जैसे चाय कॉफी आदि की लत होती है यह सभी चीजें गर्भ में पल रहे शिशु के विकास में बाधा बन सकती है इसलिए गर्भावस्था के दौरान इन सभी वस्तुओं से परहेज आवश्यक है।
- जंक फूड:– गर्भवती महिला का गर्भ के दौरान बहुत सी ऐसी चीजें खाने का मन करता है जो कि नुकसानदायक होती है जैसे कि जंक फूड। जंक फूड ऐसे भोजन होते हैं जिनमें किसी भी प्रकार का कोई पोषक तत्व तो नहीं होता है बल्कि यह प्रति व्यक्ति के पाचन तंत्र को खराब भी कर देती है। इसलिए एक गर्भवती महिला को सदैव पौष्टिक आहार ही ग्रहण करना चाहिए। जिसमें गाजर, खीरा, टमाटर और बाकी पोष्टिक सब्जियों मिलाकर वह सैंडविच बना कर भी खा सकते हैं।
- Diet chart pregnancy in hindi:गर्भावस्था आहार चार्ट सम्पूर्ण जानकारी
अंतिम तिमाही किसी भी गर्भवती महिला के लिए गर्भावस्था के दौरान एक अहम चरण होता है जिसे पार करके वह अपनी मंजिल यानी अपने गर्भ में पल रहे शिशु तक पहुंचने के लिए खुद को पूरी तरह से तैयार करती है ऐसे में संपूर्ण सुरक्षा संतुलित आहार और कुछ परेश बेहद आवश्यक होते हैं जिन्हें अपनाकर ही वह एक स्वस्थ और तंदुरुस्त शिशु को जन्म दे सकती हैं।