द्रोपदी के बारे में भविष्य पुराण में ऐसा बताया गया हे की वह पूर्व जन्म में एक गरीब ब्राह्मणी थी ,जो की वन में रहकर अपना गुज़ारा किया करती थी पर अपने पुण्य कर्मो के कारण वह उनके अगले जनम में पांडवो की पत्नी बन गई। भविष्य पुराण में यह भी बताया गया हे की जब युधिष्ठिर जुआ में हारकर वन में जा रही थे ,तो मैत्री ऋषि ने अपनी दिवय दृष्टि से यह बताया की द्रोपती जहां भी जाएगी वहा पर अनपूर्णा माता का आशीर्वाद रहेगा और कभी भी खाने पिने को लेकर कोई कमी नहीं आएगी और सारे अन्ना के भंडार भरे रहेंगे
द्रोपती के बारे में अगला रहस्य यह हे की द्रोपती के बारे में यह कथा तो सब जानते हे की अर्जुन ने स्वयंवर की शर्त को पूरा करके द्रोपती से विवाह कर लिया था विवाह करने के बाद अर्जुन द्रोपती को लेकर अपनी माता के पास गए और उन्होंने कहा माता देखिये में आपके लिए कितना अच्छा फल लेकर आया हु उस समय माता कुंती किसी काम में व्यस्त थी तो उन्होंने बगैर देखे ही यह कह दिया की तुम पांचो भाई इसे आपस में बाट लो। लेकिन उनकी दिर्ष्टि जब द्रोपती पर पड़ी तो वह उलझन में पड़ गई उसी समय भगवन श्री कृष्ण उनके सामने आए और उन्हें द्रोपती के पूर्व जनम की बात बताई। और उन्होंने बताया की द्रोपदी ने पिछले जनम में भगवान शिव की तपस्या करके यह वरदान माँगा था की मुझे ऐसा पति चाहिए जो धर्म परायण ,बलवान ,श्रेष्ठ धनुदर , रूपवान और धैर्यवान हो। यह पांचो गुण एक ही व्यक्ति में होना संभव नहीं हे इसलिए भगवान शिव के इस वरदान के कारण द्रोपती के पांच पति हुए हे।
ऐसा कहा जाता है की द्रोपती ने भगवान शिव से १४ प्रकार के गुण बताए थे पर भगवान शिव ने यह वरदान देने से मना कर दिया था। इसलिए द्रोपती ने ५ गुण वाले पति की मांग की थी। अगर शिवजी १४ गुण वाला वरदान देते तो द्रोपदी के १४ पति हो सकते थे
द्रोपदी के बारे में अगला रहस्य ये हे की ये बड़े आश्चर्य की बात मानी जाती है की द्रोपदी अपने सारे पतियों से सामान प्रेम भाव कैसे रखती थी ,द्रोपदी को लेकर पांडवो के बिच कभी कोई आपसी झगड़ा या विवाद नहीं हुआ था इसका कारण यह भी माना जाता है की पांडवो ने यह नियम बनाकर रखा था की द्रोपदी कभी भी एक साथ पांचो भाइयो के साथ नहीं रहेगी ,एक भाई द्रोपदी के साथ एक वर्ष तक रहेगा उसके बाद द्रोपदी दूसरे भाई के साथ रहेगी ,इस कर्म के कारण ही द्रोपदी सारे भाइयो के साथ सामान व्यहवार करती थी उन्होंने एक नियम यह भी बनाया था की जब एक भाई द्रोपदी के साथ होगा तो दूसरा भाई कक्ष में प्रवेश नहीं करेगा। अगर कोई इस नियम का उलंघन करेगा तो उसको एक वर्ष तक वन में रहना पड़ेगा इस नियम के कारण ही द्रोपदी सारे पांडवो के साथ सामान प्रेम भाव रखती थी।
द्रोपदी को लेकर अगला रहस्य उसकी पवित्रता के बारे में की पांच पतियों के होते हुए भी द्रोपदी अपने आप को पवित्र कैसे रखती थी ताकि द्रोपदी के पतियों के बिच उसकी पवित्रता को लेकर कोई मतभेद ना हो तो इसके बारे में यह कथा हे की जब भगवान् शिव से द्रोपती ने पांच गुण वाले पति को माँगा था और भगवन शिव ने उन्हें यह ५ पति वाला वरदान दिया था तब द्रोपदी ने भगवान शिव से कहा था की मेरी पवित्रता को लेकर मेरे पतियों के बिच आपस में मतभेद हो सकता है तब भगवान शिव ने द्रोपती को यह वरदान दिया था की जब भी तम सुबह उड़कर स्नान करोगी तो पुंन नवयौवना कुवारी कन्या का शरीर धारण कर.लोगी कही कही ये भी वर्णन मिलता हे जब द्रोपदी एक पति से दूसरे पति के पास जाती थी तो वह अपनी पवित्रता की परीक्षा जलते हुए अंगारे पर चलकर देती थी इसलिए द्रोपदी के पांच पति होते हुए भी उसे पवित्र माना जाता है।
द्रोपदी को लेकर अगला रहस्य यह हे की एक बार युधिष्ठर द्रोपदी के साथ उनके कक्ष में थे और द्रोपदी के कक्ष के बहार उनका जूता रखा था पर दुर्भागय से उनका जूता एक कुत्ता उठाकर ले जाता है उसी समय अर्जुन एक अपराधी का पीछा करते हुए द्रोपदी के कक्ष में प्रवेश कर लेते है इस अपराध के कारण अर्जुन को १ वर्ष के लिए जंगल जाना पड़ा था द्रोपदी को जब यह पता चला की यह सब एक कुत्ते के कारण हुआ हे तो द्रोपदी ने कुत्ते को श्राप दिया था की जब भी तम्हारा मिलन होगा तो दुनिया तुमको निर्लज्जता पूर्वक देखेगी द्रोपदी के श्राप के कारण ही आज भी कुत्ते गली और चोराहो पर अपना मिलन करते है।
द्रोपती को लेकर अगला रहस्य यह हे की जब युधिष्ठिर द्रोपदी को जुए में हार गए थे और दुस्शासन जब द्रोपती को लेकर भरी सभा में आया था तब द्रोपदी रीतू चक्र में थी शास्त्रो के अनुसार जब कोई स्त्री रीतू चक्र में होती है तो उसे सात्विक भाव से एक तपस्विनी की तरह रहना चाहिए इसलिए द्रोपदी ने कोई भी श्रृंगार नहीं किया था। और अपने बाल खुले रखे थे ,और भरी सभा में द्रोपदी के बाल खींच के लाए जाने के कारण उन्होंने यह पर्ण लिया था की वह अपने बाल तब तक खुले रखेगी जब तक की दुस्शासन के छाती के लहू से वह अपने बालो को नहीं भीगा लेती
पांडवो के वनवास के १२ वे साल में एक बार द्रोपदी ने एक पेड़ पर पके हुए जमुना का एक गुच्छा देखा द्रोपदी ने उसे तुरंत ही तोड़ लिया था उन्होंने उसे जैसे ही तोडा भगवन कृष्ण वह पर आए गए सुर उन्होंने द्रोपदी को बताया की एक साधु अपने १२ वर्ष का उपवास इस फल से तोड़ने वाले थे। क्योकि द्रोपदी ने फल तोड़ लिए है तो पांडव और द्रोपदी उन साधु के कोप का शिकार हो सकते थे यह देखकर पांडव और द्रोपदी भगवन श्री कृष्ण से मदद की गुहार लगाने लगे भगवन श्री कृष्ण ने उन्हें उपाय बताया की आपको उस पेड़ के निचे बैठकर सिर्फ सत्य वचन ही बोलना है अब हर किसी को अपने अपने राज खोलना पड़ेगे तो जो फल हे वह वपस पेड़ पर लग जाएगा और पांडव और द्रोपदी साधु के कोप से बच जाएगे।
सबसे पहले श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को बुलाया तो उन्होंने कहा की संसार में ईमानदारी और सत्य का प्रचार होना चाहिए और बेमानी और दुष्टता का विनाश होना चाहिए युथिष्ठिर ने पांडवो के साथ हुए हर बुरे घटनाकर्म के लिए द्रोपदी को जिम्मेदार ठहराया। युधिष्ठिर के ऐसे सत्य वचन कहने से फल जमींन से २ फिट ऊपर उठ गया।
अब श्री कृष्ण ने भीम को बुलाया और कहा अब तम सत्य वचन बोलो और साथ ही यह चेतावनी भी दी अगर तुमने झूट बोलै तो फल जल के नस्ट हो जाएगा भीम ने सबके सामने शिवकर किया की खाना ,नींद ,लड़ाई और सम्भोग के प्रति उनकी अशक्ति कभी भी कम नहीं होती है साथ ही साथ उनने यह भी कहा की उनके मन में युधिष्ठिर के प्रति बहुत सम्मान है उनके ऐसा कहते ही फल दो फिट और ऊपर उड़ गया।
अब अर्जुन की बरी थी उसने कहा की प्रतिष्ठा और प्रसिद्धि दोनों ही उनके लिए बहुत प्यारी है जब तक वह युद्ध में कर्ण को मार नहीं देते तब तक उनके जीवन का उद्देशय पूरा नहीं होगा चाहे उनको उसके लिए कुछ भी करना पड़े। चाहे वो तरीका धर्म के विरुद्ध ही क्यों न हो। फल दो फिट और ऊपर उड़ गया।
नुकूल और सहदेव ने भी सच बताया तो फल और ऊपर उठ गया अब फल बस थोड़ी दूर पर ही बचा था और अब केवल द्रोपदी ही बची थी उसने कहा मेरे पांच पति मेरी ज्ञानइन्द्रिय के सामान हे जैसे आँख कान नाक मुँह और शरीर होते है लेकिन में उन सबके दुर्भागय का कारण भी हु। में शिक्षित होने के बाद भी बिना सोचे समझे किसी भी कार्य को कर देती हु ,जिससे मुझे बाद में पझताना पड़ता है पर द्रोपती के बोलने के बाद भी फल ऊपर नहीं उठा। तब श्री कृष्ण ने कहा द्रोपदी जरूर कोई राज छुपा रही हे द्रोपदी समझ गई उसने अपने पतियों की तरफ देखा और कहा में आप पांचो से प्रेम करती हु पर में अर्जुन से सबसे ज्यादा प्रेम करती हु ऐसा सुनकर पांडव हैरान रह गए और फल पेड़ पर वापस लटक गया